Wednesday, November 16, 2011

sher

क्यों सारी कायनात में जिंदा नहीं कोई ?
साँसों से लुट रही है वफ़ा, शर्मिंदा नहीं कोई !!
चौखट पर जिसके भीड़ है वहां और है मंज़र !
ज़नाजे तो उठ रहे है, पर कन्धा नहीं कोई

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